कुछ ऐसे ही हैं हमारे रतन टाटा (Ratan tata) का प्यार इतना गहरा था कि जब वो पूरा नहीं हुआ तो उन्होंने शादी जैसे शब्द को ही अपनी जिंदगी से बाहर निकालकर फेंक दिया।
लेकिन 1962 के युद्ध ने ऐसा नहीं होने दिया। लड़की के माता-पिता ने युद्ध के कारण उसे भेजने से इंकार कर दिया। जिसके बाद उनका रिश्ता टूट गया।
उसके बाद उन्होंने आजीवन शादी न करने के फैंसले के साथ खुद को पूरी तरह पैतृक बिजनेस 'द टाटा ग्रुप' के लिए समर्पित कर दिया।
ये सच है कि सच्चे प्यार को भुलाना आसान नहीं होता है। बावजूद जिंदगी चलने का नाम है।
आज के युवा इसे नहीं समझ पाते हैं। प्यार टूटा नहीं कि वो डिप्रेशन में चले जाते हैं, गलत आदत को अपना लेते हैं।
रतन टाटा से सीखते हुए खोए प्यार को अपना ताकत बना ले और काम पर फोकस करें और आगे बढ़ें।